नॉनस्टॉप राइटिंग चेलेन्ज 2022 लेखांक 52
# नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-५२
हेल्लो लेखनी,
केम छो ? मजा मा
!
देखते देखते 1
साल बीत गया और नॉन स्टॉप 2022 प्रतियोगिता अपने अंतिम चरण पर पहुच गई| इस प्रतियोगिता हेतु मैंने दो लेखमालाए
शुरू की थी 1. बस चाय तक सीझन-2 और 2. फ़िल्मी टोक | इन दोनों लेख्मालाओ में 25-25
लेख मिलकर कुल 50 लेख हो चुके है और 51वा एक नाटक था अंतिम लक्ष्य| आज 52वा आखरी
लेख भी एक नाटक की प्रस्तुति के साथ इस प्रतियोगिता को सामाप्त कर रहा हु|
ये नाटक भी मेरे
पूज्य गुरुदेव को ही समर्पित है क्युकी गुरुदेव को तारीख 7, 8 और 9 नवम्बर में से कोई एक दिन
ध्यान के माध्यम से साक्षात्कार हुवा था| इसीलिए हर साल यह तीन दिन गुरुदेव के जन्मदिन के नाम पर पुरे विश्व में
चैतन्य महोत्सव के नाम से मनाया जाता है| कोरोनाकाल में यह महोत्सव बंध था| यह महोत्सव में गुरुदेव के प्रवचन उपरान्त रास, गरबा, भजन एवं ध्यान के कीसी विषय से जुडे नाटक की प्रस्तुति साधको के
द्वारा की जाती है| यह
महोत्सव भारतभर में अलग अलग आश्रमों में सी कही एक पर गुरुदेव की उपस्थति में
धामधूम से मनाया जाता है और बाकी के विश्वभर के अन्य शहरों एवं सेंटरों पर अपने
अपने तरीके से मनाया जाता है| कोरोना काल के पहले 2018 या 2019 मुझे साल ठीक तरह से याद नहीं है
लेकिन यहाँ नाटक उन दो सालो में कीसी एक साल में हमारे भावनगर (आखरी लेख में मै मेरे
सिटी का नाम बता चुका हु) के साधको ने यह नाटक प्रस्तुत किया था| मैंने केवल यह नाटक लिखा है और कुछ
दो चार बार डायरेक्शन दिया था बाद में समय न होने के कारण मुझे पता नहीं लेकिन जब
इस नाटक की प्रेक्टिस चल रही थी तब उन को मोबाइल से रेकोर्ड किया था वो मुझे
दिखाया था|
दुसरा, लिखने का
शौख शायद मुझे पहले भी था लेकिन शायद मुझे ही पता
नहीं था की यह स्किल मुज में है| बचपन में एक शौख था जब क्रिकेट मेच के स्कोर एवं कोमेंट्री मै अपने ही
शब्दों में एक बड़े रजिस्टर में लिखता था| यह सिलसिला बरसों तक जारी रहा| आप में से क्रिकेट शौखीनो को पता होगा की एक मेच में पाकिस्तान के
खिलाफ भारत के ख्यातनाम बोलर अनिल कुम्बले ने सारे विकेट्स यानी दशो बेट्समेनो को
एक ही बोलर ने आउट किया था| बस वो मेच मेरा लिखा हुवा आखरी मेच बन गया| क्युकी बड़ी मेहनत से बनाई हुई एक बड़ी रजिस्टर को मेरी मुहबोली बहन ने
मजाक मजाक में फाड़ दिया| उस दिन से आज तक मेच के स्कोर कभी नहीं लिखे|
जो भी मूवी
देखता था उस की एक यादी साल, दिन के साथ नोट करता था जो बरसों पहले छुट गया| जहा जहा पर टूरिंग करता था (जॉब के
बाद) वहा की पुरी जानकारी की एक डायरी लिखता था...मतलब कब रवाना हुवे कब वापस आये, तारीख समय, ट्रेन या बस का नाम, वहा कौन से प्लेस देखने लायक है, क्या खाया, कैसा एन्जॉय किया, वगैरह वगैरह की एक डायरी लिखता था| वो आदत भी बाद में छुट गई|
इस के अलावा मेरा
भाई जहा ट्यूशन में जाता था उस के टीचर ने ट्यूशन में आते स्टूडेंट्स को लेकर यूथ
फेस्टिवल में नाटक में हिस्सा लिया था| उस वक्त मैंने एक नाटक लिख दिया था जो मेरा लिखा हुवा सब से पहला
नाटक था| कोई
अन्य कलाकार उन लोगो को नहीं मिला तो सस्पेंस के अंत में एक वकील आता है वो 2
मिनिट का केमियों मैंने स्टेज पर दिया था| और आज का यह नाटक अभी तक का अंतिम नाटक है|
बाद में 2009
में सब से पहले एक पब्लिक फोरम साईट पर स्टोरी लिखनी चाही लेकिन बात नहीं बनी| यह वार्ता को लिखने के लिए मैंने दो
साल लगाये थे और इतने वर्षो तक जहा जहा मै खुद रूबरू गया हु उस स्थल का वर्णन भी
उस वार्ता के अनुरूप ढाल रहा था| उसी पब्लिक फोरम में सब से पहले मैंने अपना ऑनलाइन नाम ‘फिनिक्स’ चुना और वही पर 2010 में इसी स्टोरी को थोडा चेंज देकर शुरू
किया|
पहले महीने तो बात यहाँ तक आ गई की स्टोरी को हटाने को मन कर रहा था| लेकिन वही पर पीके भाई से दोस्ती हुई (वो
आजकल लेखनी पर एक्टिव नहीं हो पा रहे है) जिन्होंने मेरा हौशला बढ़ाया और कहानी
धीरे धीरे 6 महीने तक आगे बढ़ गई| उस के बाद एक और दोस्त का आगमन हुवा ‘रवि भाई’ जो
लेखनी के जाने माने राइटर है| और वह स्टोरी पुरे दो साल तक
वो पब्लिक फोरम पर मैंने लिखी| इस कहानी को रविभाई ने उस
साईट की एक कोम्पिटीशन में भी प्रमोट कर दिया जो मुझे पता नहीं था और उस स्टोरी को
दुसरा नंबर दिया गया|
उस स्टोरी को मैंने यहाँ भी शुरू किया हुवा है लेकिन नॉनस्टॉप 2022 के कारण
मैंने पुरे एक साल से अपडेट नहीं दिया है| उस कहानी का नाम है ‘जाने कहा ??? ध रीवोल्युशन’ जिस के 35
भाग यहाँ पोस्ट हो चुके है| जिस हिसाब से यह वार्ता पोस्ट हो
रही है, 100 से ज्यादा भाग हो जायेंगे|
इसीलिए दोस्तों, आज इस प्रतियोगिता का मेरा अंतिम पोस्ट है और आगे से वह कहानी को आगे
बढ़ाऊंगा| चलिये अब आते है आज के नाटक पर.....इस का कोई
शीर्षक मैंने नहीं दिया था| इसीलिए इसे केवल नाटक की तरह ही
ट्रीट करे और बेटियों के बारे में इस में बहुत कुछ लिखा गया है| वैसे मेरे गुरुदेव के ध्यानमार्ग में हर बार किस विषय पर लिखना है वो
विषय उपरी अधिकारी या सांस्कृतिक अधिकारी बता देते है|
इसीलिए मुझे विषय के बारे में कुछ सोचना नहीं होता है| लेकिन
अक्सर मै जिस पात्र को सोचता हु वह मेरे आसपास में से ढूंढता हु और उस के केरेक्टर
को अपने हिसाब से नाटक में ढाल देता हु| इस नाटक में मुख्य
पात्र प्रेरणा है और जिस लड़की को सोचकर मैंने लिखा है उसे मै कभी मिला नहीं
हु...लेकिन उस के बारे में मैंने सुना और ध्यान के माध्यम से महसूस जरुर किया है
और वो भी मेरी मुहबोली बहन है, बस फर्क केवल इतना है की इस नाटक में प्रेरणा
शादीशुदा है और हमारी मुहबोली बहन के बारे में मुझे कुछ पता नहीं की वो आजकल कैसी
है? लेकिन वास्तवकिता में वो बहन इस नाटक के पात्र से कई
गुना ज्यादा पावरफुल है | तो आइये मिलते है उस बेटी को जो
हमारे समाज की शान होती है|
पात्रसूचि
प्रेरणा - मुख्य पात्र
प्रथम - प्रेरणा
का पति
विशेष - प्रथम
का मित्र
काव्या - विशेष
की पत्नी
विवेक - प्रथम
का छोटा भाइ
सावित्री
बहन - प्रथम
की माता
अजयभाइ - प्रथम
के पिता
आशा
बह्न - प्रेरणा
की माता
विनोदभाइ - प्रेरणा के पिता
कमला
बहन - पडोसन
आनंदी - कमला बहन की बेटी
भावना
बहन - पडोसन
गीता
बहन - पडोसन
ज्योति
बहन - पडोसन
(द्रश्य: प्रथम का घर और घर का ड्रोइंगरुम। कुछ स्त्रीया बाते करती
हुइ)
कमला : આઝ તો ઠાકોર ના મંદિર માં મઝા આવી ગઈ હો.
(hindi translation) : आझ तो ठाकोर के मदिर मे मझा आ गया हो
भावना
: तेरी नजर तो हमेशा खाने पर ही रह्ती है कमला, तु भजन करने आइ थी या भोजन ?
आनंदी: मा का ध्यान तो हमेशा दुसरी बातो पर ही रहता है ।
कमला : (धीरे से) અરી કરમજલી, બધાઈ ની હામે હું
મોઢું ખોલે સો. (फिर
जोर से) ભગવાન ઝાણે આ મૂઇ ને ક્યારે અક્કલ આવશે? મારા તો નસીબ ઝ
ફૂટલા સે કે ઇશ્વરે દીકરા ની ઝગયાએ આ સોડી દીધી। (आनंदी मुह बीगाडती है)
ही.ट्रा.: (धीरे से) अरी करमजली, सब के सामनी क्या मुह खोलती है हे, (फिर जोर से) भगवान जाने इस मुइ को कब अक्कल
आवेगी? मेरे तो नसीब ही फुटैले है की इश्वर ने
बेटे की जगह ये सोडी (लडकी) को दे दिया.
गीता : अरे इस को क्यु कोसती हो ?
कमला : દીકરો હોય ને ગીતા તો ગંગા નવાય ઝાય હો, પણ આ સોડી એ તો
મારુ ઝીવવાનું હરામ કરી નાખ્યું સે. મારુ સાલે ને તો દીકરો જ આવે ત, પણ હાંભળયુ સે કે
અસ્તરી ના હાથ માં કાય નથી હોતું. અરે રે ઝેવા આપના નસીબ બીજું હું.
ही.ट्रा: दीकरा होवे ना गीता तो गंगा नहा ले, लेकिन इस सोडी ने तो मेरा जीववाना (जीना) हराम
कर रख्खा है, मेरा साले (चले) तो बेटा ही आवे, लेकिन सुना है अस्तरी (स्त्री) के हाथ मे कुछ
नही होता. अरे रे जैसा अपना नसीब और क्या?
ज्योती : ये बात तो सच है, संतान मे पुत्र हो तो समाज, कुटुंब मे उस मा का मान-सन्मान और भी उचा हो जाता है ।
भावना : हा इस बात को तो मै भी मानती हु की पुत्र तो पुरे कुल को
सन्मान देते है और बेटीया तो जन्म से ही पराइ होती है, क्यु सावित्री, तु क्यु चुप है?
सावित्री : मै तो सुन रही हु तुम्हारी बाते।
कमला : અરે તું કાયિક બોલ તો ખરી, અરે હા તારો
દીકરો ને વહુ તો સેક-અપ કરાવવા ગ્યાં સે ને? તારા તો બેય હાથ
માં લાડવા સે હો. ઘરે બબ્બે દીકરા અને ઝૉઝે મોટા પઇરથમ ના ઘરે દીકરો જ આવસે.
ही.ट्रा.:अरे तु कछु बोल तो सही, अरे हा तेरा बेटा ने बहु तो सेक-अप (चेक अप)
करवाने गये है ना? तेरे
तो बेय (दोनो) हाथ मे लड्डु है हो, घर
मे दो दो बेटे और देखना बडे पइरथम (प्रथम) के घर भी बेटा ही आवेगा।
सावित्री : (गम्भीर होकर) हा मै भी उसी की राह देख रही हु ।
(प्रथम और प्रेरणा का प्रवेश। प्रेरणा पैर छुती है ।)
सावित्री: आ गये बेटे । सदा सुखी रहो ।
(कुछ
देर बाद पुछती है) क्या हुवा डोक्टर ने क्या कहा ?
प्रथम : मम्मी प्रेरणा की हेल्थ अच्छी है ।
सावित्री : सोनोग्राफी करवाइ उसी के बारे मे पुछ रही हु ।
प्रथम : (अचकाते हुये)..मम्मी...वो...(प्रेरणा की और देखते
हुये)..डोक्टर ने...
(सब पडोसी को देखकर थोडा सहम जाता है।)
सावित्री : अरे ये सब बधाइ देने के लिये उतावले हो रहे है । पडोसी तो
सुख दुख के सब से पह्ले सगे होते है । तु चिंता मत कर, बता ना ।
प्रथम : (गम्भीर होकर) बेटी... (echo sound)
(कुछ
देर सन्नाटा छा जाता है तभी पिछे से विवेक का प्रवेश)
विवेक : अरे congrates भैया and thank you my dear bhabhi for giving such a news of forthcoming angel.
आनंदी : मुबारक हो प्रथमभैया और प्रेरणाभाभी।
कमला : (मौन तोडते हुए) એય અક્કલ ની ઓયથમીર, તું ઝોતી નથી એક
તો આયા આભ તૂઈટી પડ્યું સે ને તું પાસી વેવલી થા સો હે. અરે રે સાવીત્રી, આ હું થઈ ગ્યુ હે? મે તો વીસાર્યું
તું કે પેંડા ખાઈ ને મોઢું મીઠું કરસું પણ તારી વહૂ તો મોકાણ ના હમાસાર લઈ આઇવી
લે.
ही.ट्रा. (आनंदी के सामने देखकर) ओये अक्कल की ओथमीर (कम अक्कलवाली), तु देखती नही है की एक तो यहा आभ तुट पडा है और
उपर से तु वेवली (कमजोर या फिर बिच मे टांग अडानेवाली) हो रही है हे| अरे रे सावित्री, ये क्या हो गया, हे? मैने तो सोचा था की पेडा (स्वीट) खाकर मुह मीठा
करेंगे लेकिन तेरी बहु तो बुरे समाचार ले आइ लो।
विवेक : aunty, इस मे कौन सा बुरा समाचार है ?
कमला : એ ભાઈ વિવેક, હું તને આંટી ઝેવી લાગુ સુ હે?
ही.ट्रा.: ए भाइ विवेक, मै तेरे कु आंटी जैसी दिखती हु का?
विवेक : तो क्या आप हेमा मालिनी जैसी हो ?
सावित्री : ये ठीक तो कह रही है विवेक । पता है इस कलियुग मे एक बेटी
को पालना कितना कठीन होता है?
प्रथम: मम्मी मै भी रास्ते मे प्रेरणा को यही समजाता आया हु ।
विवेक : मम्मी आप मा हो कर ऐसी बाते कर रही हो ? और वो भी अपनी बहु के सामने जो खुद एक स्त्री
है। एक स्त्री होकर दुसरी स्त्री को कमजोर कर रही हो ?
(विनोदभाइ का प्रवेश)
विनोदभाइ : विवेक, बडो
की बातो मे तु interfere
ना कर । मैने सारी बाते सुन ली है ।
विवेक : पप्पा आप ने सुना ना मम्मी बेटी के बारे मे क्या बोल रही है ?
विनोदभाइ : ठीक तो कह रही है । हमारे संतान मे तुम दोनो बेटे हो, कितने फक्र से हम ज़िन्दगी जी रहे है ?
(प्रेरणा अन्दर चली जाती है और सुन मुन हो जाती है)
विवेक: पप्पा आप भी? क्या
आप नही जानते की भाभी के आने से हमारे घर मे कितनी उन्नती हुइ है, आप भी तो उसे बेटा समान सन्मान देते है। सब को
बडे फक्र से बताते है के हमारी बहु तो हमारे घर का उजाला है, मेरा तीसरा बेटा है। और भाभी को देखो, कितना पढी-लीखी है, आज अपनी कम्पनी मे ब्रांच मेनेजर है, घर भी संभालती है और ओफीस भी।
कमला: એ ભાઇ,ઝો આ આનંદી ય લાટ બધુ ભઇણી સે લે. પણ હુ કામ નુ ? અમારે નાઇત મા
કોઇ મુરતિયો આનો હાથ નથી ઝાલતો. આવડી મોટી થઇ ગઇ પણ મારે મણ એક નો ભાર સે ભાઇ.
ही.ट्रा.:ए भाइ, देख
ये आनन्दी भी बहुत पढी है ले, लेकिन
क्या काम का? हमारी ग्नाति (कास्ट)मे कोइ मुरतिया
(लडका) इस्का हाथ नही थाम रहा, ये
इतनी बडी तो हो गइ लेकिन मेरे लिये एक मण (गुजराती मे 20 किलो का शोर्टकट) का भार है।
गीता : भाइ विवेक हम बडे है और हमने दिवाली ज्यादा देखी है, तेरे माता-पिता बिल्कुल सही कह रहे है । ज़माना
किस हद तक खराब है ये तुम्हे अन्दाजा नहि है।
क़मला: મારુ તો પેલ્લે થી કેવા નુ થાતુ તુ કે ઘર ના બૈરા બાર
નોકરીયે નો હોય,
બૈરા ને તો ઘર
ભલુ ને સોકરા હાચવવાના હોય. મારી આનંદી નેય
બાર નોકરી ની મે સોખ્ખી ના પાડી સે હો. ઝુવાન સોડીયુ નો પગ ઘર ની બાર હોય ઝ
નહી હો.
ही.ट्रा.: मेरा तो पह्ले से ही केहना था की घर की स्त्रीया बाहर
नौकरी के लिये नही होती, स्त्रीयो
के लिये तो घर भला और बच्चे सम्भालना होता है। मेरी आनन्दी को भी बाहर की नौकरी के
लिये मैने सीधा ना ही बोल दीया था हो। जवान सोडी (छोडी-लडकी) का पैर घर के बाहर ही
नही हो।
विवेक : आंटी, यही
वो बहु है जिस के आने से पेह्ले इस घर मे गुजारा भी मुश्किल था। पप्पा आप अच्छी
तरह जानते है की भाभी के आने से हम कहा से कहा पहुचे है? भैया को अच्छी नौकरी मिल गयी, मुजे अच्छे कोलेज मे admission मिला, आप की provident fund की
रकम फसी हुई थी और मम्मी को जो दिल का दौरा पडा था वो भाभी की प्रार्थना ओ
की ही वजह से सबकुछ ठीक हुवा है। फीर भी आप को बेटीओ से इतनी नफरत क्यु?
विनोदभाइ : देख भाइ वो सब किस्मत का खेल है, किसी की मेहरबानी और प्रार्थना नही, समजे? इस घर मे लडकी तो नही ही आनी चाहिये
चाहे जो कुछ भी हो जाये।
(कडी नजर प्रथम और सावित्री की और डालते हुए चले जाते है)
भावना: अरे लेकिन अब क्या करे ? रीपोर्ट मे तो बेटी लिखा है ।
ज्योती : मै तो बोलती हु की.... (उस की जुबान अटक जाती है)
कमला : હવે સોખ્ખુ બોલીઝ નખવાનુ હોય હો. એ બાઇ તુ સોકરુ પડાવી નાઇખ
હો એટલે આ ઘર ની ઝાન સુટે.
ही.ट्रा.: हव्वे चोक्खा (खुल्ला) बोल ही देना है, ए बाइ तुम सोकरा (बच्चा) गीरा डाल ता कि इस घर
की जान छुटे.....
आनंदी : (चिल्लाकर) बा...
कमला : તુ તો સુપ જ મરજે હો, તુ આનંદી નઇ મારે
બર્બાદી સે, તારા કરતા મારે
પથ્થર પાક્યો હોત તો હારુ થાત. હાલ ઘરભેગી થા ઝાઝી સોવટ કરતી.
ही.ट्रा.:तु तो सुप (चुप) ही मरना हो, तु तो आनन्दी नही मेरे लिये बरबादी है, तेरी जगह अगर पथ्थर जन्मा होता तो अच्छा होता.
चल घर चल, ज्यादा चोवट (ज़ंजट) किये बिना।
विवेक : (हाथ जोडकर) ओ हेमा मालीनी जी, इस जन्म मे धरम को भ्रष्ट करने का ही सोचकर इस
दुनिया मे आइ थी क्या ?
सावित्री : विवेक, चुप । (कुछ सन्नाटे के बाद) प्रथम, ये ही ठीक होगा । तुमने सुना ना तेरे पप्पा ने
भी फैसला दे दिया । आगे कोइ clarification की जरुरत मुजे नही लगती ।
(सब चले जाते है, प्रथम अंदर आता है जहा प्रेरणा चुप चाप बैठी है।)
प्रथम: प्रेरणा...
प्रेरणा : मैने सब सुन लिया । क्या आप का भी यही फैसला है ?
प्रथम: मेरा नही सब का।
प्रेरणा: ये बेटी सब की है? मै ये पुछती हु की क्या मै बेटी नही? मैने दोनो families को नही संभाला क्या ? कभी शिकायत का मौका नही दिया क्या यही बदला दे
रहे हो मेरे अच्छाइओ का?
प्रथम : तुम गलत समज रही हो प्रेरणा, सब सच तो कह रहे है। तुम जानती नही आज झमाना
कितना खराब आ गया है, बेटीओ का जीना मुश्किल होता जा रहा है।
प्रेरणा: मेरा जीना तो कभी मुश्किल नही हुवा ।
प्रथम: बेटी को संभालना, पालना, बडा
करना, पढाना, शादी करना, शादी करते वक़्त नीची नजरो से समाज मे रहना, दहेज पुरा करना, शादी के बाद भी पुरी जिंदगी सहम कर रहना...नही
ये मुज से और तुज से भी नही होगा। बेटीया जन्म से ही पराइ होती है, बाप पर हमेशा से ही बोज होती है।
प्रेरणा: क्या मै बोज हु अपनी मा-बाप पर? क्या आप लोगो ने मेरे मात-पिता से दहेज मांगा
था?, मेरे माता-पिता तो आप के माता-पिता के
दोस्त है, क्या कभी आप ने मेह्सुस किया की मेरे
माता-पिता नजर जुकाये ज़िन्दा है?
प्रथम : तुम्हारी बात और है?
प्रेरणा: तो मेरे कोख मे पल रही मेरी, आप की बेटी भी वैसी ही होगी ऐसा आप को विश्वास
क्यु नही है ?
प्रथम : तुम्हारी तरह अपने पैरो पर खडा होना सब के बस की बात नही
होती।
प्रेरणा: कौन केह्ता है की बेटीया अपने पैरो पर खडी नही हो सकती? शास्त्रो और वेद पुराणो मे भी स्त्री की महीमा
लीखी हुइ है।
प्रथम: वो बाते सतयुग की थी, हम कलियुग मे जी रहे है। वास्तविकता अलग ही होती है।
प्रेरणा: लेकिन समाज तो पुरुष प्रधान ही रह्ता है, हम स्त्रीओ को तो हमेशा से अग्नीपरीक्षा देनी
ही पडती है।
प्रथम : युग बदलता है लेकिन समाज वही है प्रेरणा।
प्रेरणा: हमारे समाज मे आज भी नारी को लेकर दोहरे मापदंड होते है। एक
तरफ देवी कहा जाता है और दुसरी और उन का शोषण किया जाता है।
प्रथम : इसिलिये तो बेटी बोज बन जाती है।
प्रेरणा: अगर तुम पुरुषो का हम स्त्रीओ को समर्थन नही मिलेगा तो कैसे
सुधार आयेगा स्त्रीओ का इस समाज मे? हमे
एक बेटी को जन्म देने का भी अधिकार प्राप्त नही हुवा तो इस मे स्त्री और पुरुष की
समानता की कहा बात हुइ?
(सावित्रीबहन
प्रेरणा को पुकारती है और प्रेरणा बाहर आती है)
प्रेरणा: जी मम्मीजी।
सावित्री: प्रेरणा, तुम
हमे गलत मत समजो, हमे
भी दुख होता है ये सब करने पर, लेकिन
क्या करे ? तुम ये तो मानती ही हो ना की बेटे, बेटीओ से ज्यादा संघर्ष कर लेते है।
प्रेरणा: नही मम्मीजी, माफ
किजीयेगा, मै ये नही मानती, क्या मैने संघर्ष नही कीया? और फीर महीला सशक्तीकरण का अर्थ है इस शब्द के पिछे
असल मायने की।
(आशा बहन और विनोदभाइ का प्रवेश)
सावित्री: अरे आओ आओ आशाबहन और विनोदभाइ ।
आशा (हसती हुइ) गायत्री तु कब से हमे बहन और भाइ बुलाने लगी, हम दोस्त थे और हमेशा दोस्त रहेंगे। उल्टा हमे
तुम्हे गायत्रीबहन और भाइ कहना चाहिये।
सावित्री: देखा प्रेरणा बेटा, तुम्हारी मम्मी भी ये जानती है की बेटीयो की
मम्मी की हालत बेटी के ससुराल मे क्या हो जाती है? क्या बोलना, कैसे बर्ताव करना ये भी संजोग देखकर तय करना
पडता है।
विनोदभाइ: क्यु क्या हुवा?
(अजयभाइ का प्रवेश)
अजय: विनोद, तुम्हारी
बेटी और हमारी बहु एक बेटी की मा बन ने वाली है और हम चाहते है की हमारे घर मे
बेटा आये?
(विनोदभाइ और आशा एक दुसरे को देखते है)
विनोद: भाइ माफ करना गलत वक्त पर हम यहा आ गये हो तो।
अजय : (मुस्कुराते हुए) अरे विनोद तु पह्ले मेरा दोस्त है, समधी बाद मे ।
विनोद: thanks अजय, तो फिर आज समधी नही, एक बाप नही लेकिन एक दोस्त के नाते कुछ कहु तो
बुरा तो नही मानोगे ना?
सावित्री: अरे नही विनोद भाइ, आप थोडे ही पराये है और फिर प्रेरणा के मा-बाप
भी है आप को भी तो हक है ।
(तभी विशेष और काव्या का प्रवेश। सब उसे बिठाते हुए)
विशेष और काव्या : congratulations both of you.
अजय : विशेष, तुम्हारा
दोस्त एक बेटी को जन्म देने वाला है और तु इस का दोस्त है । तेरे यहा भी बेटी ही
है तो इन दोनो को समजा की बेटी को पालना कीतना कठीन है ।
विशेष : लेकिन आप लोगो को कैसे पता कि बेटा है या बेटी ?
प्रथम: पप्पा के डोक्टर दोस्त के यहा सोनोग्राफी करवाइ है ।
विशेष : अरे प्रथम, जाति
परिक्षन करवान कानुनन जुर्म है यार और फिर भी ये गलती तुम लोगो ने की?
प्रथम : लेकिन बेटे के लिये इतना तो करवाना ही पडता है ना । आज जमाना
बदल गया है, हम उस युग मे जीते है जहा ज्यादा से
ज्यादा दो बच्चे बहुत है । सोनोग्राफी नही करवाता तो बेटी ओ की लाइन लग जाती है ।
सावित्री :विशेष आजकल जमाना इतना खराब है ना की मजबुरन बेटीया मा-बाप
पर बोज बन जाती है ।
आशा: देखो गायत्री, प्रेरणा
कभी मुजे बोज नही लगी, वो
आप सब के सामने पली बडी हुइ है ना। याद करो उस के बचपन के दिन....
(फ्लेश्बेक मे बचपन की प्रेरणा, हसती खेलते हुये)
प्रेरणा: मम्मी कितने बजे है?
(अन्दर से आवाज आती है शाम के 6)
प्रेरणा: ओह मेरा होमवर्क का टाइम हो गया ।
मम्मी: तुने नाश्ता क्यु नही किया अभी तक?
प्रेरणा: मम्मी आप ने नही खाया इसीलिये ।
मम्मी: मेरा उपवास है और बच्चे को समय पे खाना खा लेना चाहिये ।
प्रेरणा: मम्मी फिर आप पुरा दिन भुखी रहोगी ?
मम्मी : अरे नही, हम
अभी रात को खाना खायेंगे ना ।
प्रेरणा: ठीक है मम्मी, मै जरुर खाउंगी, लेकिन
आप दोनो मम्मी पप्पा के साथ, मुजे
अकेले नही खाना है, प्लीज़
मम्मी...]
(बेकग्राउंड मे आवाज).....बचपन मे वो हसती खेलती थी, लेकिन वक़्त पे खाना, वक्त पर पढाइ, वक़्त पर सोना, स्कूल मे ह्मेशा पढाइ मे, इत्तर प्रव्रुत्ति मे अव्वल ये सब हमारा छोटा
सा विश्वास से भरा आजाद वातावरन उसे आगे और आगे ले जाता था।
विनोद: और याद करो जब वो युवा हुइ,
(फ्लेशबेक मे युवा प्रेरणा और उस की दोस्त)
दोस्त: अरे प्रेरणा तु हमारे साथ पिकनिक पर नही आ रही है?
प्रेरणा: नही तो,
दोस्त: क्यु ?
प्रेरणा: मेरे कराटे और योगा की एक्जाम है ।
दोस्त: क्या फर्क पडता है अगर नही गइ तो और वैसे भी एक लडकी होकर
क्यु लडको की तरह सोचती है? आखिर
ये कराटे, योगा कहा तुजे काम आनेवाला है? वैसे भी हम लडकीयो को शादी के बाद कहा ऐसा सब
काम आनेवाला है?
प्रेरणा: अरे! ये किस ने कह दिया की कराटे और योगा सिर्फ लडके ही कर
सकते है? सेल्फ डीफेंस के लिये कराटे तो लडकियो
की अहम जरुरत होनी चाहिए और योगा से मन और तन स्वस्थ और शांत रहता है।
दोस्त: तु नही सुधरेगी यार, चल बाय....]
(बेकग्राइंड आवाज....) कोलेज मे वो मस्ती भी करती थी, ड्रामा, प्रवास आदि स्थानो पर उस के नाम के चर्चे थे।
लेकिन अपने मा-बाप का नाम कभी बदनाम नही किया। उल्टा हम फक्र से कह सकते थे की हम
प्रेरणा के पेरंट्स है।
(वर्तमान मे) काव्या: हा हम दोनो साथ पढे है लेकिन कभी किसी ने प्रेरणा की तरफ
आंख उठा के नही देखा, क्यु कि प्रेरणा का वर्तन ही इतना सहज था की उस के बारे मे
कोइ गलत सोच नही सकता था।
आशा: फिर याद किजिये जब उसे नौकरी मिली।
(फ्लेशबेक मे नौकरी पर प्रेरणा कोंफरंस रूम मे मीटिंग लेती हुइ)
प्रेरणा: and I am very glad to inform all of you that it is a very big
success of our company that we have achieved our target more than 125% what we
discussed in our planning meeting. This is not only because of my alone hard
work but also this is because of team work and so that we achieved a goal. Your
hard work is highly appreciated. Thank you very much and once again
congratulations to all of you.
(बेकग्राउंड मे आवाज.....) वो कभी कभी देर से घर आती थी, लेकिन हमे पुरा भरोसा था हमारे संस्कार पर और
उस भरोसे पर मेरी बेटी हमेशा खरी उतरी है। इसिलिये आज कम्पनी के मेनेजर की पोस्ट पर
है
(वर्तमान मे) विनोद: जब शादी की बात चली तब भी और वैसे भी बचपन से लेकर शादी तक
वो हमेशा अकेले decision लेती
आइ है और उस का फैसला हमेशा से सही हुवा है। इसिलिये तो वो इतना पढी और, वो घर, नौकरी, सबकुछ एक साथ इसिलिये सम्भाल पाती है क्यु की
इस के पिछे हमारी मेहनत और विश्वास है।
सावित्री : मै कुछ समजी नही।
आशा: आप सब ने गर्भसंस्कार के बारे मे सुना तो होगा ना।
सावित्री : नही तो ।
विशेष : ये क्या होता है ।
काव्या : हा मैने सुना है ।
आशा: प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति में मनुष्य के लिए जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कारों की व्याख्या
की गई है। इनमें गर्भ संस्कार भी एक प्रमुख संस्कार माना गया है।
काव्या: गर्भ मे बालक का अपनी खुद की एक दुनिया होती है । मै भी जब
मा बन ने वाली थी तब मैने भी खुद अनुभव कीया है।
विनोद: माता के गर्भ में आने के बाद से गर्भस्थ शिशु को संस्कारित किया जा
सकता है तथा दिव्य संतान की प्राप्ति की जा सकती है। क्यु कि गर्भ मे बालक सुनता भी है
और ग्रहण भी करता है ।
विशेष: अरे ये प्रमाण तो महाभारत मे अभिमन्यु और शिवाजी महाराज की
पुरानी बातो से साबित भी होता है ।
अजय : लेकिन ये बाते तो बहुत पुरानी है।
(सभी पाडोसी यो का फिर से प्रवेश । सभी एक दुसरे का अभिवादन करते है
।)
विनोद: देख अजय, मै
कुछ बाते बताना चाहता हु, उसे
सुन ने के बाद तु जो भी फैसला करेगा वो मुजे, प्रेरणा और आशा ही नही हम सब को मंजुर होगा ।
(अजय हा मे सिर हिलाता है । तभी विवेक भी फिर से प्रवेश करता है।)
विनोद: अगर भारतवर्ष की नारी अपने नारी धर्म का त्याग कर दे तो
आर्यावर्त कह्लाने वाला हमारा हिन्दुस्तान पुरे विश्व की नजर मे कभी का गिर गया
होता।
आशा: स्रुष्टि की रचना मे
नारी और पुरुष दोनो का बराबर महत्व है।
कमला: અરે બુન અસ્તરી નો પુરુષ હારે હુ મુકાબલો હે?
ही.ट्रा,: अरे
बुन (बहन) अस्तरी (स्त्री) का पुरुष के साथ क्या मुकाबला हे ?
आनंदी : हमारे यहा कहा कोइ पुरुष है बा, (धीरे से) बापु ज़िन्दा थे तो उसे भी तुम ने कभी
नही छोडा था । (विवेक सुन लेता है और धीरे से हसता है ।)
कमला: તુ પાસી દોઢ ડાઇ થઇ હે ?
ही.ट्रा.:तु फिर से दोढ (देढ) डाही (शाणी) हुइ हे?
आशा: बहेन जी, वे
एक दुसरे के पुरक है और इसी रुप मे उनके जीवन की सार्थकता भी है।
भावना: वो तो शास्त्रो मे लिखा होगा, लेकिन संसार मे हमारा क्या मोल
बहनजी, हमे तो वही आनंद मिलना चाहिये जहा पति
और ससुराल् वाले की मरजी।
काव्या : आप की बाते बिल्कुल सच है लेकिन ये भी तो है की जहा नारी का
सम आदर होता है वहा परमात्मा भी प्रसन्न रहता है वरना सारी यग्न, पुजा, कर्मकांड भी व्यर्थ है।
विनोद: और अजय, जहा
सद्गुण सम्पन्न नारी निवास करती है वहा लक्ष्मी नीवास करती है, करोडो देवता भी उस घर मे रहने को व्याकुल रहते
है।
कमला: આયા તો પુજા કરી કરી ને આખી ઝંદગી પુરી થઇ ગઇ લ્યો, દેવ તો હુ આવે પણ આ કપાતર પનારે પઇડી સે બોલો ઇનુ હુ
કરવુ?
ही.ट्रा.: यहा तो पुजा कर कर के अख्खी ज़िन्दगी खतम हो गइ लो, देव तो क्या आये, लेकिन ये कपातर (कुपात्र)
मेरे पनारे (नसीब मे) पडी है बोलो इस्का क्या करे?
गीता: कमला तु हमेशा आनंदी को क्यु कोसती
रहती हो? क्या खराबी है उस मे?
विवेक : (ओडीयंस को धीरे से कमला की और इशारा करते हुए) देवता वहा
कभी नही जाते जहा ऐसी माचीस की तीलीया रहती हो ।
प्रेरणा: अरे कमला मौसी हमारी आनंदी भी अच्छी लडकी है और देखना ये
मेरा भरोसा है उसे जल्द बहुत अच्छा रिश्ता मिलेगा ।
कमला :અરે તો તો તારા મોઢા મા ઘી ને શક્કર હો ।
ही.ट्रा.:अरे तो तो तेरे मुह मे घी और शककर हो।
विवेक : और आप के मुह मे ताला ।
ज्योती :अरे आप बात तो सुन ने दो ।
आशा: नारी को शौर्य और ज्ञान के अर्धनारेश्वर के रुप मे पुजा गया है।
आज की नारी मे भी बच्चे को जन्म देते समय तीनो देविया विध्यमान होती है। अपनी
संतान को जन्म देते समय सरस्वती रुप, घर को सम्भालते वक्त लक्ष्मी स्वरुप और द्रुश्ट और अन्याय के सामने
लडते समय दुर्गा स्वरुप होती है।
विनोद : कीसी भी मंगलकार्य मे नारी की अनुपस्थिति मे वो कार्य अपुर्ण
माना गया है।
प्रेरणा : और इतिहास गवाह है की हमेशा आज तक बेटो ने ही मा-बाप को घर
से निकाला है,
बेटी ओ ने तो हमेशा दो दो घर को
सम्भाला है ।
विनोद :अजय, आज
के जमाने मे बेटीया बोज नही बल्की फक्र की बात होती है मेरे दोस्त।
काव्या : और अंकल भ्रुण हत्या जैसे अभीशाप से आज भी हमारा भारत लड
रहा है। ये जो भी है बडा शर्मनाक है ।
विवेक : और वो भी वहा, जहा औरत को देवी माना जाता है । ऐसा तो सोचना
भी पाप है।
सावित्री: प्रेरणा हम तो तुम्हारा भी भला सोचते थे की तुम ओफिस और घर
के बीच बेटी कैसे सम्भालती ? बेटा
तो कैसे भी सम्भल जाता है।
प्रेरणा: मम्मीजी अगर मुजे मेरी मम्मी गर्भ मे ही मार देती तो क्या
आप के बेटे को समाज मे उचा स्थान देने वाली बहु मिल पाती?
आनंदी : आप सब मुजे माफ करे अगर छोटा मुह बडी बात कहु तो। हमारे देश
मे लडकियो कि संख्या लडको के हिसाब से वैसे भी कम है और ऐसे मे हम हर लडकी को कोख
मे ही मारते है तो कौन शादी करेगा लडको से ? कैसे बढेगी कीसी भी वंश की आबादी?
अजय : प्रेरणा बेटा, तुम्हारी बात कुछ अलग है, हर औरत तुम्हारी तरह नही होती, अगर समाज मे तुम हो तो बुरी औरत भी तो है, हर औरत पवित्र नही रह पाती?
विशेष : अंकल जी, आप
ने सती अनसुया का नाम तो सुना होगा ना ? और फिर स्त्री को अपवित्र भी तो पुरुष ही करते है ना? जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने सती अनसुया की परिक्षा लेनी
चाही तो सती अनसुया ने उस को बाल स्वरुप
देकर अपना सतीत्व का परिचय करवाया था।
प्रथम : इस का मतलब खुद देवो भी इस से परे नही रह पाये ।
आशा: और फिर आज की बेटीओ के उत्कर्ष के लिये उसे शिक्षा देना, उसके अधिकारो को समजना और उपयुक्त महत्व देना
भी अती आवश्यक होता है।
काव्या : और इसिलिये कहा गया है युग चाहे जो भी हो संसार की तरक्की
केवल नारी के विकास पर ही आधारित है।
विनोद: और कोइ भी देश तभी ही पुरा विकास कर सकता है जहा की स्त्रीया
याने आधी आबादी आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक, शैक्षणिक एवम धार्मिक समस्त क्षेत्रो मे सशक्त
किया जाये।
प्रेरणा: और हमे सिर्फ शिक्षा और समानता नाम पर ही नही बल्कि जरुरत
होती है अपने निर्णय लेने और अपने सपने पुरे करने की आजादी और आत्मविश्वास की।
मेरे पेट मे पल रही नन्ही जान भी देखो जैसे हमे कह रही है...
(हीन्दी कविता) (दोस्तों यहाँ पर नाटक करनेवालों ने अपने आप
गूगल से एक काव्य को उठाया था इसीलिए शब्द मुझे याद नहीं रहे)
अजय : इस का मतलब हमे इन्दिरा गांधी और अहिल्याबाइ, कल्पना चावला,
जैसे
निर्भिक नारी की परम्परा को जारी रखना ही होगा।
आशा: नारी शक्तिरुपा है, जगत जननी है, उस
मे प्रुथ्वी के समान क्षमा, सुर्य
के समान तेज, समुद्र के समान गम्भीरता, चन्द्रमा के समान शीतलता और पर्वत के समान
उच्चता होती है।
सावित्री: बेटी प्रेरणा, तु सही मे बेटीओ के लिये सब से अच्छी प्रेरणा है, हम सब खुश किस्मत है की तु हमारे दोस्तो की
बेटी है और हमारी बहु ।
अजय : प्रेरणा, हम
तेरे साथ है, हम आनेवाली गुडिया का इंतेजार करेंगे
और उसे भी वो प्यार, आत्मविश्वास
और भरोसा के साथ संस्कार देंगे की वो हमारे कुल का ही नही बल्कि समस्त नारी जाति
का नाम रोशन करे ऐसी प्रार्थना करेंगे ।
(सब
खुश हो जाते है।
अस्तु......
***********
दोस्तों इस के
पहले जब मैंने ‘अंतिम लक्ष्य’ नाटक यहाँ पर पोस्ट किया था उस का
यूट्यूब का लिंक मुझे कुछ दिनों पहले अचानक मिला है| वैसे यह लिंक पुरे चैतन्य महोत्सव का है...लेकिन आप सब 31.44 मिनिट
से वो नाटक देख सकते है| वैसे पूरा नाटक नहीं रेकोर्ड हुवा था...फिर भी जितना है उतना आप देख
सकते है|आप
मेरे गुरुदेव को देख सकते है और मुझे भी| 2002 का इस नाटक में आप मुझे उस नाटक में पहेचान लेना (😉)|
https://www.youtube.com/watch?v=l7cWqdUNSFA
चलिये दोस्तों...यह नॉनस्टॉप 2022 प्रतियोगिता अंतर्गत मेरी अंतिम पोस्ट है|
अब मिलते है मेरी नावेल जाने कहा पर....तब तक ब..बाय..दोस्तों और आप सभी को बहुत
बहुत धन्यवाद की आप सब ने मेरी पोस्ट को पढ़ा, कीसी ने लाइक किया और कोमेंट्स भी दिये| थेंक्स टू ओल.....|
# नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-52
अदिति झा
16-Apr-2023 08:37 AM
Nice one
Reply
PHOENIX
17-Apr-2023 02:06 AM
Thanks
Reply
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
15-Apr-2023 07:26 PM
Nice part 👌
Reply
PHOENIX
15-Apr-2023 10:40 PM
Thanks
Reply